Friday, May 25, 2007

बच्चों पर पढाई का बोझ- सही या गलत!

मैडम मैडम मुझे देखो,
हालत मेरी खस्ता है,
के जी टू में पढता हूँ,
टू केजी का बस्ता है।
जी हाँ, आज कल हर गली, सड़क पर भारी भरकम बस्तों को उठाए हुए कुछ छोटे छोटे बच्चे दिख ही जातें हैं। प्रश्न ये उठता है कि क्या बच्चों का इतनी छोटी उम्र में इतनी ज्यादा कॉपी किताबों का भार ढोना सही है? मैं अपनी बहन, सोनल, जो कक्षा तीन की छात्रा है, उसकी किताबें देखता हूँ तो लगता है कि इतनी किताबें तो मैंने तीन कक्षाओं को मिलाकर भी नहीं पढ़ीं। क्या इतनी कम उम्र में इतना भार लादना सही है? क्या इससे बढ़िया पिछले समय की पढाई नहीं थी? कृपया अपनी राय जरूर भेंजें।

3 comments:

ePandit said...

बिल्कुल सहमत हूँ आपसे सोमेश। बच्वों के बस्ते उनकी उम्र के लिहाज् से बहुत बड़े होते जा रहे हैं। बहुत बार इस मसले पर बात होती है पर कोई हल नहीं निकल पाता।

अनुनाद सिंह said...

पढ़ाई, रट्टा मारना, ट्यूशन, कोचिंग -- ये सब क्या है? बच्चों की स्वाभाविक प्रवृति के विकास को अवरुद्ध करना। भारत में सब जगह 'स्पून-फ़ीडिंग' का ही बोलबाला है। इसी लिये स्वतन्त्र सोच की निहायत ही कमी है। इनमे पीछे-पीछे चलने की जबरजस्त प्रतिभा पनपा दी जाती है किन्तु नेतृत्व करने की क्षमता को मार दिया जाता है।

ट्यूशन और 'स्पून-फ़ीडिंग' - तेरा सत्यानाश हो!

अनुनाद

vinay shankar said...

somesh sir, aap तो बहुत बड़े वाले चिन्तक निकले , पूत के पाँव पलने में ही दिख जातें हैं ..........